पिछले कुछ समय से '' मुख्यमंत्री जल स्वावलंबन'' की खबरें चल रही थी |
मुझे मेरे जीसा (पिताजी) की वह पहल याद आई जब मैं चौथी कक्षा में पढ रहा था | रामदेवरा वाले खेत में ढाणी के पास जीसा ने 1977-78 में नाडी खोदनी शुरू की जो नवम्बर 1996 अंतिम सांस से एक माह पूर्व तक सतत रूप से स्नान ध्यान एवम् गीता के अध्याय से पूर्व नियमित 30-40 तगारी मिट्टी खोद कर डालना जारी रहा | हां इस अंतराल में यदि गोळ (सपरिवार)एक दो माह के लिए छायण चला जाता तो यह कार्य बाधित होता अन्यथा सतत |
आज इस नाडी के बरसात से भर जाने पर करीब होली तक पानी चल जाता है | जहां हमारे परिवार के साथ -साथ गौमाता को भी पीने का पानी मिलता है|
नाडी के प्रथम बार भरने पर वे खुद एवम् बच्चों को एक दिन नहाने का मौका देते, उसके बाद नहाना एवम् कपड़े धोना वर्जित रहता |
कोटि-कोटि नमन्
जीसा की याद तो सदा रहती ही है, पर आज मीडिया एवम् सोसियल मीडिया में ''फादर्स डे '' की पोस्ट देख कर मैं भी इस औपचारिकता को निभाने के लिए अपने आप को रोक न सका |
पुन: वंदन, नमन |
आभार Ranidan Singh Bhutto
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